Monday, March 24, 2014

अंध श्रद्धा

अंध श्रद्धा में सब चले जा रहे हैं,
भस्म भभूत माथे मले जा रहे हैं,
कोई बाबा, कोई स्वामी, कोई गुरु है बन कर बैठा,
भगवान के नाम पर सब छले जा रहे हैं।

सिंहासन पर बैठे वो उपदेश दे रहा है,
तोड़-मरोड़ कर धर्म सन्देश दे रहा है,
हाथ जोड़े, सर झुकाए, बैठे हैं सब कतार में,
गीता-कुरान के पन्ने गले जा रहे हैं।

छोटी सी बात है, सत्य है, यथार्थ है,
माया का खेल है, अवश्य कोई स्वार्थ है,
दरबारों पर चढ़ी है सोने कि चादर,
सड़कों पर बच्चे भूखे पेट पले जा रहे हैं। 

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