Tuesday, September 10, 2013

काश इन्सान समझ पाता .




एक परिंदा नीले आसमान में,
पंख फैलाए,
देखता है धरती की ओर,
इस सोच में की,
कितना घिनौना है ये इंसान।

क्यों लड़ता है ये ,
मरता है ,
काले और गोरे के फर्क पर,
बड़े और छोटे के तर्क पर,
धर्म पर,
जात पर, रोता है,
अपने ही बनाये हालात पर।

रंग रूप,
कद काठी,
जो है कुदरत का दिया हुआ,
उस पर भी क्यों इतना इसने,
अभिमान है किया हुआ?

इतने में,
आदमी  ने उपर की ओर देखा,
परिंदा डरा,
और,
कही दूर उड़ चला,
उड़ते परिंदे को देख, आदमी बोला ,
क्या खूब,
कितना सुन्दर है ये परिंदा।

काश वो समझ पाता। 

No comments:

Post a Comment